राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत (Sources of History of Rajasthan)
Sources of History of Rajasthan Notes |
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1861 में अलेक्जेण्डर कनिम के नेतृत्व में।1902 में इसका पुनर्गठन सर जॉन मार्शल द्वारा।
- राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण का कार्य 1871 में A. C. कालांइल
- अभिलेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र या एपीग्राफी
- अभिलेखों की प्राचीन लिपि के अध्ययन को पुरालिपिकशास्त्र या पेलियोग्राफी
- राजस्थान के प्रारम्भिक अभिलेखों की भाषा संस्कृत लेकिन मध्यकाल में संस्कृत, राजस्थानी व फारसी।
- गद्य-पद्य तथा इनकी लिपि महाजनी व हर्षकालिन परन्तु अधिकांश नागरी लिपि में
1.अचलेश्वर का लेख (1285) :-
- आबू के अचलेश्वर मन्दिर के पास से भाषा पद्यमयी संस्कृत
- इसका लेखक शुभचन्द्र व उत्कीर्णक कर्मसिंह था।
- बप्पा से समर सिंह तक की वंशावली
- बप्पा के हारित ऋषि की अनुकम्पा से राज्यत्व प्राप्ति का उल्लेख
- इसमें भूमि अबु क्षेत्र को मेदपाद |
- अचलेश्वर प्रशस्ति इसमें राजपूतों की उत्पति अग्निकुण्ड से व धूम्रराज परमारों का मूल या आदि पुरुष होने की जानकारी।
2. अपराजित का शिलालेख (661 ई):-
- नागदा (उदयपुर) के पास कुण्डेश्वर मंदिर से प्राप्त
- औझा द्वारा इसे विक्टोरिया हॉल (अजमेर) में रखवाया गया।
3. अथूर्णा का अभिलेख :-
- अथूर्णा गांव बांसवाड़ा
- परमार शासकों की जानकारी
4. आमेर का लेख (1612) :-
- पृथ्वीराज भारमल- भगवंतदास- मानसिंह इसमें कछवाह वंश को रघुवंश तिलक कहा।
- लेख-संस्कृत , लिपि= नागरी
5. आहड का देवकुलिका लेख :
- अक्षपटलाचीशों के मेवाड़ शासक
- अल्लट ,नरवाहन व शक्ति कुमार का उल्लेख
- भाषा-संस्कृत मेवाड अल्ल्ट व प्रतिहार देवपाल के युद्ध की जानकारी
6.आहड़ के शक्ति कुमार का लेख -
- 977 टॉड इसे इंग्लैण्ड ले गये। (टॉड की पुस्तक एनाल्क एवं एन्टि क्वीराज में इसकी विषय वस्तु का वर्णन)
- शक्ति कुमार का उल्लेख
- इसमें अल्लट की माता महालक्ष्मी का राठौड होना,तथा अल्लट की पत्नी हरियादेवी का हुण होना तथा उसके द्वारा (रानी) हर्षपुर गांव बसाना अंकित है।
- राजा नरवाहन के अक्षपटलिक होना
- आहड़ की आर्थिक सम्पन्नता का बोध
7. एक लिंग की नाथ प्रशस्ति (971) :-
- लकुलीश मंदिर (कैलाशपुरी, नागदा उदयपुर) में
- पाशुपत योग-साधना करने वाले योगियों व साधुओं का वर्णन
8. कणसवा का लेख (738):-
- कोटा के पास कणसुआ के (शिव मंदिर से) इसमे सम्भवतः राजस्थान के अन्तिम मौर्य वंशी राजा धवल का उल्लेख
9. किराडु का लेख (1152):-
- बाडमेर के किराडू में शिव मंदिर से
- पशुवध निषेध से मानवीय तत्वों की स्थिति का बोध
- विशेष अधिकार को इस युग में मान्यता तथा परमार शासकों की वंशावली अधिकार को इस युग में मान्यता तथा परमार शासकों की वंशावली 8वीं सदी के प्रारम्भ में मौर्य शासक
- 2 जगह पर शासन करते थे। 1. कणसवा (कोटा) 2. चितौड़
10. खमणोर की छतरी का लेख (1624) :-
- मेवाड़ी भाषा में उत्कीर्ण, यह छतरी ग्वालियर के शालिवाहन की है।
11. घटियाला का शिलालेख (661 दं)-:-
- लेखक = मृग, उत्कीर्णकता = कृष्णेश्वर
- घटियाला (जोधपुर) से प्राप्त संस्कृत भाषा में चम्पूशैली में
- कुक्कुक प्रतिहार का वर्णन।
- यहां से दो अन्य लेख प्राप्त हुए जिनमें एक मराठी पद्य में दूसरा संस्कृत मे मग जाति के, ब्रह्मणों का वर्णन
- गुर्जर प्रतिहारों का आदि पुरुष हरिशचन्द्र नामक ब्राह्मण जिसने प्रतिहार वंश की स्थापना मण्डोर में की
- इस में मग जाति के ब्राह्मणों का वर्णन
- लोग मारवाड में शाकद्वीपीय ब्रह्मण के नाम से भी जाने जाते थे।
- हरिशचन्द्र को रोहिल्लदि भी कहते थे। इसके उतराधिकारी नागभट ने मेहता को अपनी राजधानी बनाया।
12. चाकसू की प्रशस्ति 813 :- चाकसू (जयपुर)
- गुहील वंशीय राजाओं (इस लेख में उनके प्रतिहारों के सामन्त होना भी नरवर्मा के बारे में जानकारी देता है।
13. चितौड़ कर कुमारपाल का शिलालेख (1150) :-
- समिद्धेश्वर मन्दिर में लगा कुमारपाल सोलकी के समय का।
- इसमें सर्वप्रथम शिव, सरस्वती की वंदना फिर कवियों की रचना उसके पश्चात चालुक्य वंश का यशोगान
- रचयित- समकीर्ती
14. चितौड़ का लेख (971):-
- इसमें परमार शासक भोज एवं उसके उत्तराधिकारियों का वर्णन इसके उत्तराधिकार नरवर्मा ने महावीर जिनालय का निर्माण करवाया।
- देवालयों में स्त्री प्रवेश निषेध
15. चीरवा का शिलालेख (1273 ) :- चीरवा (उदयपुर) में वागेश्वरी आराधना से प्रारम्भ
- जैन आचायों का वर्णन जिसमें भदेश्वरसरि, सिद्धसेन भुवनसिंह सूरि ने चीरवा शिलालेख की रचना की व केलिसिंह ने उत्कीर्ण करवाया।
- संस्कृत भाषा मे समरसिंह द्वारा लिखा गया
- बप्पा रावल के वंशजों का वर्णन
- इसमें जैत्रसिंह को प्रलय मारूत के समान बताया।
- इसमें घंटेड जाति के तलारक्षों (सज्जन की रक्षा दुष्टों को दण्ड) की जानकारी
16. जगन्नाथ प्रशस्ति-:- 1652
- भाषा= संस्कृत, लिपी= देवनागरी भव्य पंचायत मंदिर जगन्नाथराय (उदयपुर) से
- बप्पा से सांगा तक वर्णन
- हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन
- जगत सिंह ने जगन्नाथ राय मंदिर का निमार्ण करवाया। मंदिर का निर्माण अर्जुन, सूत्रधार माणा व मुकुन्द की देखरेख में हुआ (सपनों में बना मंदिर) विष्णु को समर्पित मन्दिर है।
- रचना= कृष्ण भट्ट द्वारा
- महाराणा जगत सिंह द्वारा पिछोला तालाब में मोहन मंदिर व रूप सागर तालाब का निर्माण करवाया।
17. जालौर का लेख (1118 ) :-
- परमारों की उत्पति वशिष्ठ के यज्ञ से होनी बताई।
18. जूना के आदिनाथ मंदिर का लेख :- 1295 जूना (बाड़मेर)
- व्यापारिक केन्द्र होने का पता चलता हैं
19. त्रिमुखी बावड़ी की प्रशस्ति 1675 :-
त्रिमुखी बावड़ी (देवारी-उदयपुर) मे लगा।
- राजसिंह की रानी रामरसद ने बनवाया था।
- राजसिंह के समय में सर्वऋतु विलास नाम के बाग बनाये जाने
- चारूमति विवाह का उल्लेख
- बप्पा से राजसिंह तक का वर्णन
- रचियता= रणछोड़ भट्ट
20. देलवाड़ा का लेख 1434 :- संस्कृत व मेवाड़ी दोनों भाषाओं में उत्कीर्ण
- टका नामक मुद्रा, प्रचलित थी।
- देलवाड़ा व्यापारिक केन्द्र
21. धाईबी पीर की दरगाह का लेख :-
- चितोड का नाम खिजाबाद मिलता है।
22. नांदेसमां का लेख (1222ई):-
- मेवाड के नादेशमा गांव के टूटे हुए सूर्य मन्दिर पर
- जैत्रसिंह की राजधानी नागदा बताई जो गुहिलो की राजधानी।
23. नाखेल का लेख :-
- यह सोमेश्वर मंदिर, नाडोल (पाली) मे भाषा संस्कृत एवं लिपि नागरी।
- इसमें स्थानीय शासन व्यवस्था की जान कारी मिलती है।
24. नेमिनाथ मंदिर की प्रशस्ति (1230):-
- देलवाडा गांव के नेमिनाथ मंदिर में तेजपाल द्वारा बनावाया गया।
- रचना= सोमेश्वर देव ने की और सूत्रधार चण्डेश्वर ने उत्कीर्ण किया।
- परमार राजाओं की उपलब्धिया
- वास्तुपाल व तेजपाल के वंशो का वर्णन मिलता है।
25. पटनारायण का लेख - (1287):-
- द्रम्म का प्रचलन ,भूमिकर निर्यातक गिरवर (सिरोही) का लेख
- वशिष्ट ऋषि शिष्ठ ऋषि के मंत्र बल से आबु के अग्निकुण्ड से परमार धूम्रराज की उत्पत्ति बतलाता है।
- आबु की प्रशंसा
- परमारो के वंश प्रशस्तिकार गंगदेव की विद्वता का उल्लेख
26. पानाहेड़ा का लेख (1059):-
- मंडलीश्वर शिवालय (पाणाहेडा बांसवाडा ) से प्राप्त
- मालवा व वागड के परमारों की जानकारी
- इसमें पाणाडा का नाम पासुलाखेटक दिया है।
27. प्रतापगढ़ का लेख (942) :
- भाषा संस्कृत व लिपि नागरी / यह लेख भट्ट मात्तृभट्ट दितीय के समय का है।
28. प्रतापगढ़ का शिलालेख (946):-
- प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल का वर्णन तथा अनुदान देने का वर्णन
- इसमें कुछ प्रचलित देशी शब्दों का उल्लेख भी जैसे अरहर, कोशवाह (नटस की सिंचित भूमि). चौसर (एक फूलों की माला) पती (तेल की नाप व पाणी (तेल निकालने का साधन
29. फलौदी का लेख (1630):-
- यह कल्याणराय मन्दिर (फलौदी में) महाराजा जसवन्त सिंह के समय का
- जिसमें 22 जून 1639 का समय दिया हुआ है।
30. बागढ़ का लेख (994) :- अजमेर के म्यूजियम में रखे लेब में
- डूगरपुर-बांसवाड़ा के लिए वागट शब्द का प्रयोग
31. बूढ़वा गांव का लेख (1817) :- बूडवा बांसवाड़ा
- लेख में बासवाड़ा में पिण्डारियों के उपद्रव का उल्लेख
32. बिजौलिया का शिलालेख (फरवरी 1170):-
- पार्श्वनाथ मंदिर के समीप (बिजोलिया भीलवाडा) 13 पद्म व 32 श्लोक
- इसे लोलाक द्वारा 1 पार्श्वनाथ मंदिर व कुण्ड निर्माण की स्मृति में लगवाया
- साभर व अजमेर के चौहानों का वर्णन
- शासक को वत्सगोत्रीय ब्राह्मण कहा गया।
- इसमें कई प्राचीन स्थानों के नाम जैसे जाबालिपुत्र (जालौर),नडडल (नाटोल), शाकम्भरी (साभर), दिल्लिका (दिल्ली), श्रीमाल (भीनमाल), मंडलकर (माडलगढ़), विध्यवल्ली (बिजोलिया),नागहद (नागदा )आदि
- रचियता गुणभद्र व उत्कीर्णक- गोविन्द
- इसमें इस समय दिये जाने वाले भूमि अनुदान को डोहली की संज्ञा दी गई।
- इसका लेखक= केशव
- बिजोलिया के आस-पास के क्षेत्र को उत्तमाद्रि कहा गया।
- ग्राम समूह की इकाई को प्रतिगण की सज्ञा दी गई।
- इस अभिलेख के अनुसार 551 में वासुदेव चौहान ने साभर में चौहान वंश की स्थापना की तथा साभर झील का निर्माण करवाया इसमें 93 श्लोक जो संस्कृत भाषा में (13 पद्य है)
33. जूनागढ़ प्रशस्ति / बीकानेर प्रशस्ति / रायसिंह प्रशस्ति (1594 ):-
- बीकानेर के रायसिंह के समय का जिसकी भाषा संस्कृत
- बीकानेर दुर्ग के निर्माण की जानकारी
- रचयिता जैन मुनि = जैता
- बीका से रायसिंह तक का वर्णन
- राय सिंह की काबुल विजय का वर्णन
34. बीठु का लेख (1273) बीठु (पाली) :-
- आदिपुरुष राव सीहा के चरित्र पर प्रकाश तथा मृत्यु की तिथि का उल्लेख
35. बुचकला शिलालेख-:-
- पार्वती मंदिर (बिलाड़ा जोधपुर) इसकी भाषा संस्कृत
- यह नागभट्ट प्रतिहार के समय का बनवाया।
- इसने कन्नौज को अपनी राजधानी ।
36. बेणेश्वर का लेख (1866):-
- इसमें बेणेश्वर को डूंगरपुर राज्य की सीमा में माना गया।
- इस पर M.M मैकेंजी व पॉलीटिकल सुपरिन्टेन्ट हिली ट्रेक्ट्स के अंग्रेजी में हस्ताक्षर।
37. भीनमाल का लेख (1271) -:-
- आहुडेश्वर मंदिर में लगा
- पंचकुल का उल्लेख मिलता है जिसमें महाराजा द्वारा नियुक्त पंचकुल के सदस्य अनुदान दिये जाने के समय उपस्थित रहते थे।
38 मंडोर का शिलालेख (685):-
- एक बावड़ी की आयताकार शिला पर
- यह लेख उत्कीर्ण जिसमें बावड़ी के निर्माण काल में बनवाने वाले माधू ब्रह्मण की सूचना
39. जगन्नाथ कछवाह की छतरी का लेख (1613):-
- मेजा गाव (माण्डलगढ़, भीलवाडा) में
- जगन्नाथ कच्छवाह की 32 खमो की छतरी और सिंहखरी महादेव का मंदिर कहते है। मेवाड आक्रमण से लोटते मांडल में इनका देहान्त हुआ था जहांगीर के शासन काल में बनी।
40. मानगारी लेख (713):-
- टोली गांव चितोडगढ़ ,चितोड़ के पास मानसरोवर झील के तट पर टॉड को मिला।
- समुद्रमथन का उल्लेख है।
- राजा भोज के पुत्र मान का वर्णन है।
- इसमें संसार को क्षणभंगुर समझकर सम्पति से मानसरोवर झील का निर्माण करवाया।
- लेखक = पुष्प ,उत्कीर्णक = शिवावदित्य
- टॉड ने समुद्र में फेंका। अपनी (पुस्तक एनालक एट एन्टी )
41. रसिया की छतरी का लेख:-
- चितौड़ में रसिया की छत्तरी पर यह लेख लगा हुआ था जो वर्तमान में उदयपुर संग्रहालय में रखा हुआ है।
- रचना - वेदशर्मा ने
- यह उस समय की नगर योजना को समझने में सहायक।
- पश्चिमी राजस्थान की वनस्पति (खेर, चरखा, कैंसर अंगूर आदि का उल्लेख ) ।
42. राज प्रशस्ति (1076) :-
- अकाल के समय महाराणा राजसिंह ने राजसमन्द झील का निर्माण (निर्माण में 1,05,07,605) का उल्लेख
- 25 पाषाण पर यह संस्कृत भाषा के 14 वर्ष में लिखी (कही कहीं पर फारसी शब्दों का प्रयोग)
- रचयिता = रणछोड़ भट्ट , इसे गजर, मुकुन्द, अर्जुन सुखदेव, केशव आदि ने उत्कीर्ण किया।
- प्रारम्भ में देवस्तुति फिर मेवाड राजवंश की उपलब्धियां
- इस प्रशस्ति में 1106 श्लोक, 25 सर्ग
- इस प्रशस्ति को महाकाव्य की संज्ञा दी।
- डॉ. मोतीलाल ने राज प्रशस्ति महाकाव्य का सम्पादन किया था जिसे साहित्य संस्थान राजस्थान विद्यापीठ रायपुर ने 1977 में प्रकाशित किया।
- बापा ने 734 में चितौड़ के मान मौर्य को पराजित कर चितौड़ पर अधिकार किया तथा रावल की उपाधि धारण की
- इस अमर द्वारा की गई मुगल मेवाड़ संधि का वर्णन इसमें जगतसिंह के दान व महाराजा राजसिंह व औरंगजेब के सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
- बापा के लिए बाप शब्द का प्रयोग
- इसमें अमर सिंह व शाहजहा के मध्य 1615 की मेवाड़ की मुगल-मेवाड़ संधि का वर्णन
- कर्णसिंह द्वारा खुर्रम की जहागीर के विरूद्ध विद्रोह करने पर 4 माह तक जगमंदिर महल में शरण
- राजसिंह ने 1600 में चारूमति से विद्रोह
- राजसिंह द्वारा सूर्यग्रहण के समय हिरण्य कामधेनु महादान व चंद्रग्रहण के समय कल्पता नामक महादान व अपने जन्मदिवस पर कल्पदुम व हिरण्याश्व माहादान
- राजसिंह द्वारा बेरिसाल सिंह को सिरोही का शासक बनाने में सहयोग
43. राजोगढ़ का लेख (923) राजगढ (अलवर):-
- भाषा संस्कृत व लिपि नागरी है।
- राजोगढ़ के शिल्पकार सर्वदेव ने शान्तिनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
44. शंकरघट्टा का शिलालेख (713):-
- शंकरघट्टा (गम्भीरी नदी के तट पर चितौडगढ़)
- भाषा संस्कृत | प्रारम्भ में शिव की बन्दना
- मानभग द्वारा बनाया सूर्य मंदिर का उल्लेख
45. शाहबाद का लेख (1679) :-
- इसमें स्थानीय कालाकारों की वसूली तथा उनके प्रति मुगल नीति पर प्रकाश
46 श्रृंगी ऋषि शिलालेख (1428):-
- श्रृंगी ऋषि नामक स्थान जो एकलिंग से 10 किलोमीटर दूर है।
- मोकल ने पत्नी गोराम्बिका की मुक्ति के लिए कुण्ड बनवाया था उसकी प्रतिष्ठा की संस्कृत भाषा में लिखा
- 30 श्लोक प्रारंभ विद्यादेवी की प्रार्थना से
- मेवाड के हम्मीर , क्षेत्रसिंह, लाखा व मोकल का वर्णन
- मोकल द्वारा 25 बार तुलादान का उल्लेख है।
- भीलो के जीवन पर प्रकाश डाला गया है
- इसकी रचना कविराज वाणी विलाश व शिल्पकार पन्ना था।
47. श्री एकलिंग जी का एक सुरह लेख (1803 ) :-
- जसवन्तराव होल्कर के मेवाड आक्रमण का उल्लेख |
48. साभर की बावड़ी का लेख (1363) :-
- सांभर की बावड़ी का लेख जो आमेर के संग्रहालय में रखा हुआ है
- बामदेव के पुत्र नाथू व गंगादेव के प्रयत्न से इसका निर्माण इसमें 2 भाषा एक स्थानीय व फारसी
- बावडी की व्यवसी के लिए नमक अनुदान का वर्णन |
49. सामर का लेख :-
- सागर के लेख कुए से प्राप्त हुआ जो जोधपुर संग्रहालय में
- सोलकी मूलराज द्वारा अन्हिलवाडा राज्य की स्थापना का पता चलता है
- चालुक्य वंश की प्रशंसा । चालुक्य राज्य जय हिंद
50. सामोली शिलालेख :-
- सामोली गांव उदयपुर से संस्कृत भाषा में लिखा है जो वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में
- मेवाड़ के गुहिल राजा शिलादित्य के समय का
- स्थानीय भीलों पर शिलादित्य का प्रभाव स्थापित होना आदि का उल्लेख
- जेतक (हरिजन) द्वारा जावरमाता का मंदिर।
51 सारणेश्वर प्रशस्ति 953 :- सारणेश्वर (उदयपुर) से प्राप्त
- भाषा संस्कृत एवं लिपि नागरी
- लिपीकार= पाल और वेलक
- मेवाड के गुहिल वंशी राज अल्लट, उसके पुत्र नरवाहन व मुख्य कर्मचारियों के नाम पद सहित
- वराह मंदिर की व्यवस्था, स्थानीय व्यापार कर आदि का वर्णन
52. सिमडोनी का शिलालेख (945):-
- प्रतिहार शासक देवपाल को परमभट्टारक,महाराजाविराज और परमेश्वर कहा गया।
53 सुंडा पर्वत का शिलालेख :- जालौर के जसवन्तपुरा गांव के शिलाखण्डों पर उत्कीर्ण
- रचयिता= जयमंगलाचार्य व उत्कीर्णक सूत्रधार जैसा था।
- चाचिगदेव चौहान का वर्णन
- समरसिंह ने जालौर गढ़ का निर्माण व समरपुर की स्थापना की।
- भाषा संस्कृत व लिपि देवनागरी
- # इस लेख को सोनगरा चौहानों की प्रशस्ति |
54. सुलतान गयासुद्दीन का लेख :-
- ओझा ने इसे विक्टोरिया हॉल (अजमेर) में रखा अब यह राजकीय संग्रह उदयपुर में
- इसमें 3 पंक्ति 3 शेर फारसी लेख जिसमें चितौड़ पर तुगलक गयासुद्दीन की प्रभूता |
55. सैयद हुसैन की दरगाह का लेख:- तारागढ़ (अजमेर) में
- दरगाह में गुमान जी सिंधिया ने दालान का निर्माण
56. हर्मनाथ मंदिर की प्रशारित (973):- हर्षनाथ (सीकार) में
- भाषा संस्कृत |
- निर्माण = अल्लट (विग्रहराज द्वितीय के सामन्त )द्वारा करवाया गया।
- चौहान वंश की उपलब्धियों का वर्णन
- वागड के लिए वार्गट शब्द का प्रयोग
- इस मंदिर को प्रकाश मे लाने का श्रेय सार्जेन्ट सी डीन को
57. हस्ती कुण्डी शिला (996):-
- हस्ती कुण्डी से प्राप्त लेख वर्तमान में अजमेर संग्रहालय मे
- भाषा संस्कृत जो सूर्याचार्य द्वारा लिखि गई है।
- चौहान शाखा के प्रमुख शासक हरिवर्मा, मम्मत व धवल का वर्णन
- इसके अनुसार देवालय के प्रबन्ध को चलाने के लिए एक गोष्ठी थी।
58. बडली का शिलालेख (443):- बडली (अजमेर)
- राजस्थान का प्राचीनतम शिलालेख जो बड़ली अजमेर से ओझा (खोज) को भीलोत माता मंदिर में प्राप्त हुआ।
- ब्राह्मी लिपि का प्रथम शिलालेख है।
- ** राजपूताना सग्रहालय अजमेर में सुरक्षित है। **
59. घोसुंडी शिलालेख :- चितौड़
- द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व सकर्षा एवं वासुदेव के पूजा ग्रह के चारों ओर चारदिवारी बनाने का उल्लेख
- भाषा = संस्कृत लिपि ब्राह्मी।
- इसमें गजवंश के राजा सर्पतात द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने का वर्णन
- D. R. भण्डाकर द्वारा प्रकाशित घोसुण्डी शिलालेख राजस्थान में वैष्णव /भागवत धर्म से संबंधित प्राचीनतम शिलालेख
- खोज - 1837 में कविराजा श्यामलदास द्वारा
- यहां मिला मंदिर सबसे प्राचीन वैष्णव मंदिर है।
60. नांदसा यूप स्तम्भ लेख (225) :- नांदसा गाव (भीलवाड़ा),
- गोल स्तम्भ पर उत्कीर्ण इस लेख की स्थापना - सोम द्वारा
- यहाँ गुणगुरू द्वारा पष्ठिरात्र यज्ञ सम्पादित करवाया गया।
- इसकी भाषा संस्कृत
61. बड़वा स्तम्भ (बडवा, कोटा):-
- मौखरी वंश के राजाओं द्वारा त्रिरात्र यज्ञ का उल्लेख
- भाषा- संस्कृत
- आमेर म्यूजियम सुरक्षित
62. गंगाधर का लेख (423):- गंगाधर (झालावाड),
- 5 वीं सदी की सामन्ती व्यवस्था
- भाषा = संस्कृत तांत्रिक शैली
- एकी एक बावड़ी ।
63. नगरी का शिलालेख नगरी :-(चितौड़)
- भाषा संस्कृत नागरी लिपि
- 424 ई. में विष्णु की पूजा का उल्लेख ।
64. बैराठ शिलालेख विराटनगर :- (जयपुर)
- अशोक के दो अभिलेख मिले है। भाब्रू अभिलेख व बैराठ अभिलेख
- बैराठ शिलालेख 1877 में कालाईट द्वारा खोजा गया
- भाब्रू का शिलालेख 1837 कैप्टन बर्ट द्वारा बीजक डूंगरी से खोजा गया
- इसे 1840 कलकता संग्रहालय में
- इसमें मगध के राजा अशोक के त्रिरत्न 1. बुध 2. धम्म 3. संघ का उल्लेख
65. कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति या विजय या विष्णु :- 3 दिसम्बर 1460
- भाषा संस्कृत
- इसका प्रारम्भ अत्रि ने तथा उसे पुरा महेश ने किया।
- गुहिल से कुम्भा तक की जानकारी
- कुम्भा की विजयों का उल्लेख
- मण्डोर से भैरव की मूर्ति लाकर भैरवपोल बनाने का उल्लेख
- कुम्भा द्वारा कुम्भ श्याम मंदिर का निर्माण ।
- कुम्भा द्वारा लिखे संगीत ग्रन्थों की जानकारी = संगीतराज (5 भागों में), संगीत रत्नाकर, संगीत मीमांसा, सूढ प्रबन्ध चण्डी शतक, गीतगोविन्द टीका आदि ग्रन्थों का उल्लेख।
- कुम्भा को महाराजधिराज अभिनव भरताचार्य, हिन्दु सुरताण, राणारासो, छापगुरू, दानगुरू शैलगुरु आदि कहा।
- हम्मीर को विषमघाटी पंचानन (विकट परिस्थितियों में सिंह के सम्मान कहा गया । )
66. कुम्भलगढ़ का शिलालेख (1460):- कुम्भाश्याम / मामादेव मंदिर से प्राप्त
- 5 शिलाओं पर लिखित (270 श्लोक)
- लेखक = कान्हा व्यास ओझा के अनुसार लेखकर कवि महेश गुहिल कालभोज बप्पारावल के पुत्र थे यह इस प्रशस्ति में माना गया है।
- कालभोज ने हारित ऋषि के आशीवाद से राज्य की प्राप्त की थी
- इसकी भाषा संस्कृत तथा बाप्पारावल को विप्रवंशीय बताया गया
- हम्मीर को विषयघाटी पंचानन कहा गया।
67. रणकपुर प्रशस्ति लेख (1439) :-
- रचना= वेद शर्मा / इस लेख में नाणक शब्द का प्रयोग मुद्रा के लिए
- 47 पंक्तियां का लेख
- गुहिल को काल भोज का पुत्र बताया गया है।
- कालभोज व बप्पारावल दोनों अलग-अलग बताया गया है
- मंदिर के सूत्रधार / निर्माता - देपा / देपाक का उल्लेख है।
- रणकपुर मंदिर का निर्माण धरणक शाह ने करवाया।
68. एकलिंग नाथ प्रशस्ति :- कैलासपुरी गांव (उदयपुर),
- मंदिर का निर्माण + कालभोज द्वारा
- यह पाशुपात या लकुलीश सम्प्रदाय का मंदिर,चतुर्मुखी शिवलिंग
- भाषा= संस्कृत, लेखक= महेश भट्ट
- गुहिल वंश का इतिहास
- कालभोज के सन्यास लेने का उल्लेख
- मंदिर का पुनः निर्माण महाराणा रायमल द्वारा
69. चितौड़ का जैन कीर्तिस्तम्भ :-
- आदिनाथ को सम्पित
- 7 मंजिला
- राणा हम्मीर सिसोदिया का वर्णन
70. समिद्धेश्वर प्रशस्ति :-
- 1428 - चितौड़ " भौज मंदिर " (त्रिभुवन नायक) का परमार शासका द्वारा पुनः निर्माण मोकल ने करवाया।
- भाषा-संस्कृत तथा 75 श्लोक ।
- चितौड़ दुर्ग में स्थित ।
- रचियता = एकनाथ, लेखक- बीसल ,उत्कीर्णक= गोविन्द
- इसमें हम्मीर की तुलना अच्युत, कामदेव, कर्ण, ब्रह्मा व शंकर से ।
71. भ्रमरमाता का लेख (450) :- छोटी सादड़ी (प्रतापगढ़)
- भाषा - संस्कृत, रचियता = ब्रहमसोम व उत्कीर्ण= पूर्वा ने ।
- औलिकार वंश व गौर वंश के शासकों का उल्लेख ।
72. बसंतगढ़ शिलालेख सिरोही :-
- भाषा - संस्कृत
- राजस्थान शब्द का प्राचीनतम प्रयोग राजस्थानीयादित्य नाम से
- 17 वीं सदी की सामन्त व्यवस्था का उल्लेख ।
73. सांडेराव का लेख (1164) :- देसूरी (पाली)
- यह कल्हण के समय का मंदिर को दान का उल्लेख |
74. किणसरिया लेख लेखक:- महादेव, परबतसर (नागौर)
- भाषा= संस्कृत
- कैवाय माता की स्तुति ,कैवाय माता मंदिर का निर्माण राजा - चच्च / चच्य ने करवाया।
- चौहान वंश का उल्लेख
75. माधवराय का प्रशस्ति :-
- संस्कृत पद्य व बागड़ी गद्य लिपिबद्ध इसमें बागड़ प्रदेश की संस्कृति का उल्लेख
- रचयिता = हरदास
76. जामा मस्जिद (1845 ):- भरतपुर,
- मस्जिद का निर्माण महाराजा - बलवंत सिंह द्वारा
77. शाहजहानी मस्जिद का लेख:-
- शाहजहां ने महाराणा अमरसिंह को हरा कर अजमेर आपा व इस मस्जिद का निर्माण ।