राजस्थान के जनजाति आन्दोलन
Complete details and notes of tribal movements of Rajasthan |
1. मीणा आंदोलन (1924) :-
मिणाओ की लूट-पाट के कारण भारत सरकार ने सन् 1924 में " क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट " (आपराधिक जनजाति अधिनियम) पारित किया।
सन् 1930 में जयपुर
ने "जयराम पेशा कानून" बनाकर मिणाओ को अपराधी जाति घोषित
किया।
सन् 1933 में जयपुर में "मीणा क्षेत्रीय महासभा " गठित हुई।
→ जयपुर रियासत से जयराम पेशा कानून हटाने की माँग की गई।
जयराम
पेशा कानून के तहत 25 वर्ष तक के मीणा पुरुष-महिलाओ को थाने में रोजाना हाजरी
देनी होती थी।
मीणा जाति सुधार समिति :- सन् 1944 (जयपुर में )
सन् 1944 में " जैन मुनि मगनसागर जी " ( मिणाओ के
धर्मगुरु ) ने "मीन पुराण" लिखकर मीणा जाति को उसके प्राचीन
गौरव के बारे में बताया। ( निम का थाना, सीकर)
1946 में जयराम पेशा कानुन
समाप्त ।
28 अक्टूबर 1946 को "बाघावास जयपुर" सम्मेलन में सभी मीणा
चौकीदारो ने स्तीफा दे दिया। इसे "मुक्ति दिवस " मनाया गया
]
मीणा कॉपर्स की स्थापना = 1921 ई.
1946 के बाद स्त्रियों व बच्चो
को हाजिरी में छुट दे दि गई।
गुरूजी का पत्र = गोविन्द गिरी का 33 सुत्रिय
माँग पत्र ।
सन् 1952 ई :- हीरालाल शास्त्री व टीकाराम पालीवाल के प्रयत्नो से
मीणाओ पर लगे सभी प्रतिबंध समाप्त कर दिए गए।
2) भील आंदोलन :-
3. एकी आंदोलन / भोमर भील आंदोलन :-
मोतिलाल तेजावत :-
जन्म - 1886-87 ई. , उदयुपर
का "कोलयारी गाँव" में ,ओसवाल बनीया परिवार में |
उपनाम :- "बावजी" , भीलो का मसीहा, आदिवासियों का मसीहा , मेवाड़ का गाँधी
सन्
1936 में " वनवासी सघ " की स्थापना की तथा भीलो में जनजागृति लाने हेतु 1921
में "वैशाख पुर्णिमा" को चितौड़ जिले मातृकुण्डिया से भोमट/ एकी आंदोलन शुरू
किया।
मोतिलाल तेजावत ने महाराणा के समक्ष 21 सूत्री माँगे रखी
जिसे "मेवाड़ की पुकार" कहते है।
7 मार्च 1922 को
नीमड़ा (विजयनगर) गाँव में भीलो की सभा पर गोलिया चलाई 1200 + या 150 भील
मारे गए।
भोमट या एकी आंदोलन को "मेवाड़ का जलियावाला बाग हत्याकाण्ड" या "राजस्थान का दुसरा जलियावाला बाग हत्याकाण्ड" कहा जाता है |
मोतिलाल का नारा :- "ना हाकिम ना हुकम" मोतिलाल तेजावत की पुस्तक "मेवाड़ की पुकार" में 21 सूत्री मांगे |
जनजाति आंदोलन या जनजातियों से संबंधित शब्दावली :-
जनजाति की संख्या में राजस्थान भारत का 6 वाँ राज्य है |
भील जो राजमार्ग
की रक्षा करते थे उन भीलों को "बोलाई" कहा जाता था |
भील जो गॉवो की चौकीदारी करते उन्हें "रखवाली" कहा जाता था
|
पालो पर लगने वाला वार्षिक कर = "आधा बराड़"
परोपकारी सभा = दयानन्द सरस्वती - सन् 1883 (उदयपुर)
भील आंदोलन के 3 प्रमुख कर्णधार :-
1. भुरीलाल , 2 भोगीलाल
पाण्ड्या , 3. राजकुमार मानसिंह