राजस्थान के किसान आंदोलन || NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित सम्पूर्ण विवरण एवं नोट्स

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राजस्थान के किसान आंदोलन

Farmers movement of Rajasthan image
Farmers movement of Rajasthan complete details


किसान आंदोलन समय स्थान
बिजोलिया किसान आंदोलन 1897-1941 ई. गीरधरपुरा, भीलवाड़ा
बेगू किसान आंदोलन 1921-23 ई. बेगू, राजस्थान
बूंदी/बरड़ किसान आंदोलन 1923-43 ई. बूंदी, राजस्थान


किसान आंदोलन से सम्बंधित शब्दावली:-

  • खालसा = शासकों के नियंत्रण में भूमि
  • जागीर = जागीरदारों के नियंत्रण में भूमि

(i) तलवार बंधाई कर  = 

  • 1906 ई. में पृथ्वीसिंह ने प्रारम्भ किया |
  • राजपुतो ने यह मुगलो से लिया। ( Imp. )
  • नए जागीरदारो द्वारा सामन्त को दिया जाने वाला भूमि नजराना |

(ii) कूंता =

  • खड़ी फसल पर राज्य कर्मचारियो द्वारा अनुमान लगाकर लिया जाता।

(iii) लाटा :- 

  • फसल काटने के बाद लगता था। गठरी का अनुमान लगाकर ।

(iv) चंवरी कर :- 

  • लड़की के विवाह पर 5 ₹ का कर लगता था। (1903 - कृष्ण सिंह )

(v) भोग :- 

  • भूमि कर जब अनाज के रूप में लिया जाता था ।

(vi) चरनौत :-  

  • भूमि पर लगने वाला ।

(vii) बिगोड़ी :- 

  • नकद के रूप में भूमि कर ।

(viii) सिंगोटी :-

  • पशु विक्रय पर लगने वाला कर ।

(ix) शुंगा कर :- 

  • मवेशी चराने का कर |

(x) जाजम लाग:-

  • जब जागीरदार के नई जाजम बिछाई जाती थी।

(xi) खिचड़ी लाग :- 

  • सेना जिस गाँव से गुजरती व रुकती वहाँ के लोगों से वसुला जाता ।

(xii) इजारा पद्धति:- 

  • ऊँची बोली लगाने वाले को निश्चित समय के लिए भुमि दी जाती थी।

लाग या कर का नाम :- नूत, बराड़, टंकी, हालमा व पूला कर।

1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में भाग लेने वाले किसान ⇒ कालुजी, नंदाराम, गोकुल जी ।

1. बिजोलिया किसान आंदोलन :- (1897-1941)

भीलवाड़ा - गिरधरपुरा से प्रारम्भ |
भारत का सबसे लंबा (44वर्ष) चलने वाला "अहिंसात्मक आंदोलन" था |
बिजोलिया मेवाड़ का प्रथम श्रेणी का ठिकाना |
बिजौलिया के सामन्त = "रावजी "
बिजौलिया ठिकाने का संस्थापक = अशोक परमार 
अशोक परमार को राणा सांगा द्वारा खानवा युद्ध में सहायतार्थ हेतु "उपरमाल की जागीर" दी थी।
उपरमल = झालावाड़,कोटा ,बूंदी 
खानवा युद्ध :- 07 मार्च 1527 ई.

यहाँ सर्वाधिक किसान "धाकड़ जाति" के थे |
आंदोलन के समय मेवाड़ का राजा "फतेहसिंह" था ।
बिजोलिया के किसानो पर 84 प्रकार का कर था ।

(1.)  प्रथम चरण :- 

किसान गिरधरपुरा में एक सभा का आयोजन करते है।
साधु सीतराम दास के नेतृत्व में सभा का आयोजन हुआ।
नानजी पटेल (बेरिसाल) व ठाकरी (गोपाल) को महाराणा फ‌तेहसिंह के पास भेजा।

महाराणा ने "हामिद हुसैन" को जाँच हेतु भेजा।

(1.) चवरी कर :- 1903 ई.
कृष्णसिंह ने लगाया
1905 में समाप्त किया गया।

(ii) तलवार बधाई कर :- 1906 ई.
नए सामन्त पृथ्वीराज ने लगाया। 
1914 में जागीर खालसा कर दी।
महाराणा ने अमरसिह राणावत को नियुक्त किया।

प्रथम चरण का नेतृत्व :- साधु सीताराम, फतेहकरण चारण व ब्रह्मदेव ने |

(2.) द्वितीय चरण :-

1916 में नेतृत्व "विजयसिंह पथिक" ने किया।
पथिक ने कानपुर से प्रकाशित "गणेश शंकर विद्यार्थी" के अखबार "प्रताप" में खबरे छपवाई |
अतिरिक्त मराठा, अभ्युदय, भारत -मित्र में भी खबरे छपवाई । 
→ सन् 1920 ई. में पथिक ने रामनारायण चौधरी के साथ मिलकर "राजस्थान केसरी" अखबार प्रकाशित किया।

गाँधीजी का कथन - "बाकी सब बाते करते है पधिक सिपाही की तरह कार्य करता है।"

गाँधीजी ने पथिक को "राष्ट्रीय पथिक" कहा

सामन्त विरोधी अभियान = पथिक द्वारा दिसंबर 1916 में

उपरमाल पंच बोर्ड :- 
                                    स्थापना - 1917 में , पथिक द्वारा स्थापना
                                    अध्यक्ष = मुन्ना पटेल
किसान पंच बोर्ड :-
                                    स्थापना :- 1916 ई. में पथिक द्वारा |
                                    अध्यक्ष :-  साधुसीताराम दास

अप्रैल 1918-19 में "बिंदुलाल भट्टाचार्य जाँच आयोग" का गठन ।

1919 में वर्धा (MH) में - "राज. सेवा संघ " की स्थापना । 

विजयसिंह पथिक :- 
                                जन्म - बुलंदशहर (UP)
                                मुल नाम - भूपसिंह गुर्जर ।

इन्हे टोड़गढ़ जेल (अजमेर) में बंधी भी बनाया।
चितौड़ में "महात्मा" के रूप में प्रसिद्ध हुए।

बिजोलिया आंदोलन के समय सन् 1922 में AGG "रॉबर्ट होलेण्ड" , AGG का सचिव "विलकिन्सन" की 
मध्यस्थता में 84 में से 35 कर माफ किए गए। (सांमत ने समझोते को नही माना )

(3.) तीसरा चरण :-  ( 1923-41 ई. )

1918-19 में बिंदुलाल भट्टाचार्य आयोग का गठन |
84 में से 35 का माफ करने का समझौता बिजोलिया सांमत ने नही माना ।
सन् 1927 में आंदोलन का नेतृत्व "माणिक्यलाल वर्मा" ने किया और 1929 में "हरिभाऊ उपाध्याय" ने किया ।
सन् 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री " वी. राघवाचार्य " तथा राज्यमंत्री "मोहन सिंह मेहता " ने किसानो के मध्य समझौता हुआ।
शर्ते मान ली गई और आंदोलन समाप्त हुआ।

जय हिंद, वंदे मातरम नारे के साथ।

माणिक्यलाल वर्मा ने बिजौलिया में " पछीड़ा " गीत लिखा ।
बिजोलिया किसान आंदोलन में संदेशवाहक का कार्य "तुलसी भील " था |
पथिक की पुस्तक (What AreThe Indian State) में लिखा था = 
"बिजोलिया आंदोलन का प्रारंभ उत्साहपुर्ण या परंतु अंत दर्दनाक हुआ।"

बिजोलिया आंदोलन से संबंधित महिलाएँ :- महिला नेत्री - अंजना देवी, नारायणी देवी वर्मा, रमा देवी ।
जानकी देवी का संबंध बिजौलिया से है।
विजयसिंह पथिक ने गणेशशंकर विद्यार्थी को चाँदी की राखी भेजी थी।

2. बेगू किसान आंदोलन :- (1921 - 23 ई.),चितौड़गढ़

चितौड़गढ़ {आंदोलन मेनाल भीलवाड़ा (भेखकुण्ड स्थान) से प्रारम्भ} 
मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना |
सर्वाधिक किसान = धाकड़ जाति ।
सामन्त = अनुपसिंह
नेतृत्व :- रामनारायण चौधरी बाद में विजयसिंह पथिक ।
बेगू आंदोलन का प्रारम्भ :- सन् 1921 में , मेनाल (भीलवाड़ा) भेरव कुण्ड स्थान से हुआ ,

वोल्शेविक समझौता :- ट्रेंच ने कहा ।
पारसौली समझौता :- सामन्त अनुपसिंहं व जनता के मध्य ।
अनुप सिहं ने किसानों की शर्तें मान ली थी परंतु मेवाड़ के शासक (भूपाल सिंह) ने मना कर दिया।

अनुपसिंह के स्थान पर सामन्त अमृतलाल (नया सामंत )को नियुक्त किया।

मेवाड़ रियासत ने ट्रेच नामक अधिकारी को जाँच करने के लिए भेजा परंतु 13 जुलाई 1923 को गोविन्दपुरा (भीलवाड़ा) में किसानो पर गोलिया चलाई गई । (ट्रेच ने)
गोलियों में दो किसान शहीद हो गए = (i) रुपाजी , (ii) कृपाजी

बेगू किसान आंदोलन में महिलाओ का नेतृत्व = अजना चौधरी (रामनारायण चौधरी की पत्नि) ने किया।
सन् 1925 में 34 लगान दरे समाप्त कर दी गयी |
अन्त में नेतृत्व विजयसिंह पथिक ने संभाला।  पथिंक ने बेगार प्रथा को खत्म किया। 
अन्ततः 10 सितंबर 1923 ई. में पथिक को 5 साल का कारावास हुआ और अप्रेल 1927 में रिहा ।

3. बुंदी/बरड़ किसान आंदोलन :- (1923 - 43 ई.) (लम्बाखोह के किसान ) निमना छेत्र |

नेतृत्व - नयनूराम शर्मा / हरिप्रसाद शर्मा
बूंदी के स्थानीय आंदोलनों का नेतृत्व नित्यानंद ने किया |

यह आंदोलन जागीरदारी के विरुध न होकर बूंदी प्रशासन के विरुध था। बुँदी में महिलाओ से भी बेगार ली जाती थी।
1922-23 में लम्बाखोह के किसानो ने निमना में आंदोलन किया।

डाबी हत्याकाण्ड :- 2 April 1923 (बूंदी में ) (गुजर किसानो ने )

पुलिस ने सभा पर गोलिया चलाई। { इकराम हुसैन ने } 
डाबी में " झण्डा गीत" गाते हुए "नानक भील एवं देवीलाल गुर्जर " शहीद हो गए। 
देहसंस्कार = देवगढ़ में |
माणिक्यलाल वर्मा ने नानक जी के याद में एक गीत "अर्जी " लिखा ( बूंदी किसान आन्दोलन के दोरान )

किसानो की दमनचक्र की नीति का विरोध तरुण राजस्थान (अजमेर से प्रकाशित ) , राजस्थान केसरी (वर्धा से प्रकाशित ) , प्रताप (कानपुर से प्रकाशित ) समाचार पत्रो में विरोध जताया गया।
पम्पलेट प्रकाशित किया - "महिलाओ पर बुँदी राज्य में अत्याचार"

5 अक्टूबर 1936 में बरड़ क्षेत्र में ही गुर्जर किसानो ने भी "नुक्ता प्रथा" व करो के विरोध में प्रदर्शन किया।

प्रमुख नेता :- प. नयनुराम शर्मा, भंवर लाल सुनार नारायण सिंह

4. अलवर/निमुचना किसान आंदोलन :- (14 मई 1925 ई.)

अलवर में 80% भूमि खालसा थी ।
20% जागीर भुमी थी ।
ये एकमात्र आंदोलन था जो खालसा भुमि में प्रारम्भ हुआ |
अलवर/निमुचना किसान आंदोलन का कारण :- सुअरो का आतंक व राजस्व दर में वृद्धि।

यहाँ खालसा भू-स्वामित्व वाले किसानो को "विश्वदार" कहते थे।

अलवर का शासक = जयसिंह
अलवर में " इजारा पद्धती " चलती थी। इजारा पद्धती में उच्ची बोली वाले किसानो को भूमि दी जाती थी।

अलवर में 3 भूमि बंदोबस्त कानून लगाये गये :-  राजस्व की दरे 40% बढ़ा दी गई।

वर्ष लागु करने वाला
1876 ई. पाउलेट द्वारा
1900 ई. डायर द्वारा
1924 ई. N.L. TIKKO द्वारा

राजपुतो और ब्राह्मणो को दी जाने वाली छुट वापस ले ली।
भु-राजस्व के विरोध में हो रही सभा पर पुलिस (छाजु सिंह नामक पुलिस अधिकारी ) ने गोलिया चलाई ,बहुत सारे किसान मारे गए 
गाँधीजी ने यंग इंडिया समाचार पत्र में इस हत्याकाण्ड को "दोहरी डायरशाही" कहा।
रियासती समाचार पत्र में = "जलियाबाग हत्याकाण्ड से भी भयानक बताया"
तरुण राजस्थान समाचार पत्र ( अजमेर से प्रकाशित ) ने इस घटना को सचित्र प्रकाशित किया था।
गाँधीजी ने इस घटना को समाचार पत्र "यंग इण्डिया" में "राज. का जलियावाला हत्याकाण्ड" की संज्ञा दी ।

अलवर किसान आंदोलन को निमुचणा हत्याकाण्ड कहा = रामनारायण चौधरी ने 

मेव किसानो का आंदोलन :- (अलवर)

बाँध बनाने, घास काटने, बेगार प्रथा को समाप्त कराने हेतु |

5. भरतपुर किसान आंदोलन :- 1931 में नया भूमि बंदोबस्त लागू।

योजी लम्बरदार को गिरफ्तार किया और आंदोलन समाप्त।

6. मारवाड़ किसान आंदोलन :-

मादा पशुओं के निर्यात से प्रतिबंध हटा देने पर (निर्यात को रोकने के लिए)

मारवाड़ किसान आंदोलन के दोरान व्यास, भवरलाल सर्राफ एवं आनन्दराज को जेल भेजा और गाँधी इर्रवीन समझोते कारण रिहा हुए । (1931 ई.)

मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना  :- 
                                                            व्यास के नेतृत्व में (जयनारायण व्यास)
                                                            स्थापना = चाँदमल सुराणा ने की।

1915 मरुधर मित्र हितकारिणी सभा की स्थापना ।

तौल आंदोलन :- 1920 - 21 ई. ( इसमें मुद्रा का भाव गिरा दिया गया )

नेतृत्व = चाँदमल सुराणा ने |
'मादा पशुओ के निष्कासन को रोकने के लिए। 
इसमें मुद्रा का भाव गिरा दिया गया ,राजा मान गया। सफल आंदोलन रहा (प्रयास = जयनारायण व्यास) 

मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना चाँदमल सुराणा ने की |

डाबड़ा हत्याकाण्ड - डीडवाना, नागौर (1947)

मथुरादास माथुर ने सम्मेलन आयोजन किया। यहाँ पन्नाराम, रामुराम, रुधाराम, नन्दराम, चुन्नीराम, धन्नाराम मारे गए।

चन्दावल की घटना :- सोजत , पाली(1942 ई.)

चन्दावल के जागीरदार ने कार्यकर्ताओ एवं किसानो पर हमला किया। गाँधीजी ने हरिजन में इस घटना की निंदा की।

7. शेखावाटी किसान आंदोलन :- (1923-1951) करो में वृद्धि के कारण

शासक = मानसिह
सीकर का सामंत :- कल्याण सिंह
नेतृत्व :- रामनारायण चौधरी ।
'गोविन्दम हनुमानपुरा का एक स्वतंत्रता सेवानी शेखावाटी किसान आंदोलन का नेता था। राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में ।

चिड़ावा सेवा समिति - 1921

तरुण राज में समस्या छापी।, रामनारायण चौधरी ने चिड़ावा समिति बनाकर जन जागृति का कार्य किया |कल्याणसिह ने लगान 25% से 50% कर दिया।

1925 - अखिल भारतीय अखिल भारतीय जाट महासभा अधिवेशन, अजमेर के पुष्कर में हुआ ।

पंचपाणों :- विसाऊ, मलसीसर, डुडलोद, मंडावा, नवलगढ़ (झुंझुनु)

डुडलोद राजस्थान का प्रथम गधा अभ्यारण है |
पंचपाणी में आंदोलन प्रारंभ हुआ। aalh

क्षेत्रीय जाट सभा = 1931 ई.
                प्रथम अधिवेशन = 1933 ई.में , पथलाना/पलसाना (सीकर)

जाट प्रजाति महायज्ञ :- 1934 - देशराज के सुझाव पर 
  • 20 वी. सदी का सबसे बड़ा विराट महायज्ञ ।
  • 100 मन घी की आहुति व 35 लाख लोग आए ।

कटराथल सभा :- 25 April 1934

मानसिह द्वारा श्योत्या का बास की जाट महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार किया | 
10000 महिलाओ का नेतृत्व किशोरी देवी ने किया। सिहोठ गाँव में हुए दुर्व्यहार के कारण कटराथल सभा का आयोजन हुआ।
फुला, रमा, उमा, दुर्गा देवी आदि महिलाएँ सामिल थी । उत्तमा देवी ने ओजस्वी भाषण दिया।

जयसिहपुरा की घटना :- 21 जुन 1934 (झुंझुनु)

ईश्वरी सिंह ने गोलिया चलाई।
ईश्वरी सिह को सजा हुई।
प्रथम मामला है, जब जाट हत्यारो या "किसानो के हत्यारो को सजा" को सजा हुई।

1924 "जाट वीर साप्ताहिक पत्रिका" में प्रकासन |

NOTE:- शेखावाटी जकात आंदोलन नेतृत्व प. नरोतम लाल जोशी

खुड़ी गाँव की घटना :- 25 मार्च 1935 ई.

चौधरी रत्ना को मार दिया।
खण्डवा की पत्रिका "कर्मवीर" में छपा।

कुंदन हत्याकाण्ड :- 1935 ई. (सीकर) (25 अप्रेल 1935 ई. )

लार्ड वेब ने गोलियाँ चलाई।
लोरेंस ने इंग्लैण्ड के हाऊस ऑफ कॉमन में खबर की बात उठाई 
डेली हेराल्ड Newspaper में छापी। - लंदन का समाचार पत्र 
मण्डावा के देवी वक्स ने नागरिक अधिकारी की , पथिक जी भी आये ,सम्बोधिक किया।

धापी देवी का संबंध = कुंदन हत्याकाण्ड (धापी दादी )

कुंदन हत्याकाण्ड में शहीद :- (i) चेतराम , (ii) टीकूराम , (iii) तुलछाराम ,  (iv) आशाराम

मेवाड़ का जाट किसान आंदोलन :-

फतेहसिंह के समय
मातृकुण्डिया (चितौड़) जाटो द्वारा।

शुद्धि आंदोलन :- 1928 ई.

भरतपुर राजा कृष्ण सिंह ने प्रारंभ किया।
कारण :- बिट्रीश सरकार ने कृष्ण सिह को हटाकर डकन मैकेजी को नया प्रशासक बनाया।




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