राजस्थानी चित्रकला ,विकास ,चित्रकार व उद्भव
राजस्थानी चित्र शैलियाँ :-
राजस्थानी चित्रकला का उद्भव = " अपभ्रंश शैली " से हुआ है |
राजस्थानी चित्रकला का नाम सर्वप्रथम " रामकृष्णदास " ने दिया।
राजस्थानी चित्रकला प्रारम्भ : मध्यपाषाण काल में
भारत में स्वर्णकाल = जहाँगीर (1605-1627 ई.) का काल
राजस्थानी चित्रकला के जनक = "कुन्दल लाल मिस्त्री"
राजस्थान में चित्रकला का प्रारम्भ = 15 वी सदी
राजस्थान में चित्रकला का स्वर्णकाल = 17 - 18 वी सदी का काल (चित्रकला का स्वर्णकाल "कार्ले खण्डेलवाल ने कहा)
राजस्थानी चित्रशैली का नामकरण :-
आनन्द कुमार स्वामी ( पुस्तक राजपुत पेटिंग) "राजपुत चित्रशैली" कहा |
जादुनाथ सरकार ने प्रांतीय "मुगल काल" कहा |
W.H ब्राऊन (पुस्तक इण्डियन पेटिंग) में "राजपुत कला" कहा |
H. C. मेहता (पुस्तक स्टडीज इन इण्डियन पेटिंग) "हिंदु चित्र शैली" कहा |
रायकृष्णदास ने "राजस्थानी चित्रकला " कहा |
राजस्थान के प्राचीन ग्रंथ जैसलमेर के जिन भट्टसूरी भण्डार में सुरक्षित है।
मेवाड़ चित्रशैली | मारवाड़ चित्रशैली | ढूढ़ाङ चित्रशैली | हाडौती चित्रशैली |
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चावण्ड / उदयपुर | जोधपुर | आमेर /जयपुर | बूँदी |
देवगढ़ | बीकानेर | अलवर | कोटा ( झालावाड नही ) |
नाथद्वारा | नागौर | उनियारा टोंक | |
शाहपुरा | किशनगढ़ | शेखावाटी | |
जेसलमेर | |||
अजमेर |
"राजस्थानी चित्रकला" पर प्रभाव : (1.) जैन प्रभाव , ( 2.) अपभ्रंश प्रभाव , (3.) गुजराती
(getCard) #type=(post) #title=(You might Like)राजस्थानी चित्रशैली :-
- नाम दिया = रामकृष्ण दास ने
- राजस्थानी चित्रकला का प्रथम चित्रकार = श्रीरंगधर
- प्राचीन ग्रन्थ = ओघ नियुक्ति दश वैकालिका सूत्र चुर्णी = 1060 ई.
- चित्रकार = पाहिल
- मिलेगे = जिन भद्र संग्रहालय - जैसलमेर
(1) मेवाडी चित्रशैली :-
- प्रभावित - अजंता चित्रशैली से ।
- राजस्थान की मूल शैली ।
- राजस्थानी चित्रकला की जनक
- प्राचीनतम ग्रन्थ :-
- 1260 ई. का ( तेजसिंह के समय) आहड़ में "स्रावण प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी " - कमलचंद
- ताड़पत्र पर निर्मित प्रथम उपलब्ध ग्रंथ ।
- 1423 ई० राणा मोकल के समय " सुपार्श्वनाथ चरित" (देलवाड़ा में) - हीरानंद
(a) चावण्ड चित्रशैली :- (उदयपुर)
- मेवाड़ चित्रशैली का उद्गम शुरू = प्रताप ने
- प्रसिद्ध चित्रकार = नसिरुद्दीन
- विशेषताएँ :-
- कदम्ब वृक्ष के चित्र
- मीन आँखे
- त्रिविमय प्रभाव
- छोटी गर्दन एवं पगड़ियाँ
- प्रसिद्ध चित्र :- ढोला मारु का चित्र (1598 ई.) में |
- चित्रकार = "नसिखद्दीन"
- भूला ढोला मारू री चौपाई = प्रमुख तिथियुक्त सचित्र ग्रंथ |
- नसिरुद्दीन - चित्र रागमाला व बारहमाप्ता का चित्रण
- निर्माण - चितेरो की ओवरी / तस्वीरो रो कारखानो
- चित्रकार :-
- साहिबद्दीन (व्यक्ति चित्र विशेषज्ञ)
- चित्रण - रागमाला व रामायण के युद्ध काण्ड (1605 ई.)
- मनोहर
- चित्रण का विषय -
- " मूल्ला दो प्याजा के लतीको पर "
- "कलिला दमना पर चित्रण"
- कलिला - पंचतंत्र का फारसी अनुवाद
- चित्रकार = विष्णु शर्मा
- नानाराम (1540 ई. ) = पारिजात अवतरण का चित्र
- कृपाराम व जगन्नाथ, गंगाराम आदि
- रंग = लाल-पीला
- पेड = कदम्ब का पेड़
(b) नाथद्वारा शैली :-
- प्रारम्भ = राजसिंह के काल में स्वर्णकाल (1652-80 ई.)
- प्रमुख महिला चित्रकार :-
- कमला व ईलायची
- भगवान कृष्ण के अधिक चित्र
- नाथद्वारा की पिछवाई चित्रकला प्रसिद्ध है।
- वृक्ष का चित्र :- केले का वृक्ष |
- रंग = पीला + हरा
- श्रावक - प्रतिक्रमण सूत्र चुर्णी :-
- ताम्रपत्र पर प्रथम ग्रन्थ
- तेजसिंह (1260 ई.) के समय आहड़ में
- चित्रकार- कमलचन्द
- वर्तमान में - जैसलमेर संग्राहलय में है |
- सुपार्श्वनाथ चरितम :-
- चित्रित ग्रंथ - हीराचंद
- मोकल (1422-23 ई. ) के समय
- देवकुल पाटक । देलवाड़ा
- वर्तमान में - सरस्वती संग्राहलय (जयपुर)
- विशुद्ध रूप से प्रारम्भ - 1500 ई.
- आरम्भ - अपभ्रंश काल
- अजन्ता, कश्मीर, गुजरात, जैनशैली
(c) देवगढ़ चित्रशैली :-
- प्रारम्भ :- 1680 में , द्वारिकादास चुण्डावत" के समय
- "श्रीधर अंधारे" ने इस चित्रकला को महत्व दिया।
- देवगढ़ चित्रशैली = मेवाड + मारवाड़ + ढूढाड का मिश्रण।
- ·रंग = हरा + पीला
- देवगढ़ चित्रशैली का सर्वाधिक विकास = जयसिंह के समय |
- प्रसिद्ध चित्र :-
- (i) मोति महल के चित्र
- (ii) अजारा की ओबरी के भिति चित्र ।
- प्रसिद्ध चित्रकार :- बैजनाथ, चौखा, बख्ता आदि |
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2. मारवाड़ चित्रकला :-
(i) जोधपुर चित्रशैली :-
- प्रारम्भ :- मालदेव के समय (1532-1562 ई. में )
- "उत्तराध्ययन सूत्र " नामक ग्रंथ (जैनो का ) का चित्रण
- "चोखेलाव महल" (जोधपुर) में भित्ति चित्र ।
- वीर जी ( बिठलदास) :-
- "रागमाला" का चित्रण , सुरसिंह के समय ।
- जोधपुर चित्रशैली का प्रसिद्ध चित्रकार
- जसवन्त सिंह के समय = मुगल प्रभाव आया ।
- मानसिह के समय = जोधपुर चित्रकला का स्वर्णकाल
- नाथ सम्प्रदाय से संबधित ग्रंथो का चित्रण ।
- शिवपुराण, दुर्गा पुराण, नाथ चरित्र |
- मारवाड़ चित्रकला पर युरोपिय प्रभाव = तख्त सिंह के समय
- दुर्गादास राठौड़ का चित्र :- H. K. मुलर ने ।
- जोधपुर चित्रशैली =
- प्रसिद्ध चित्रकार :- शिवदास, अमरदास, किशनदास, जीतमल, धज्जू
- विशेषताएँ :-
- रंग :- लाल +पीला
- चित्र के बॉर्डर पर पीला रंग।
- बादलो का चित्रण
- पहाड़ो का चित्रण
- प्रेम कहानियो का चित्रण :-
- ढोला-मारु की कहानी
- महेन्द्र - मूमल की कहानी
(ii) बीकानेर चित्रशैली :-
- प्रारम्भ :- रायसिंह के समय
- "भागवत पुराण" का चित्रण
- स्वर्णकाल = अनुपसिंह का शासनकाल
- उस्ता कला :-
- ऊँट की खाल पर की जाने वाली चित्रकारी
- अनुपसिहं ने अली रजा व खकन्ददीन को ( लाहौर से) बुलाया ।
- उस्ता कला के लिए प्रसिद्ध चित्रकार = हेसामुद्दीन → पद्मश्री समानित।
- कैमल हाईड ट्रेनिंग सेंटर = उस्ता कला विद्यालय (बीकानेर)
- मधेरण कला:-
- बीकानेर महाराजाओ के चित्र ।
- गीले पलस्तर पर चित्रकारी
- बीकानेर में "आला-गीला" कहते है।
- शेखावारी में "पणों कला" कहते है।
- अन्य नाम :- फ्रेस्को कला या अरायस कला
- बैगनी + बादामी रंगो का प्रयोग।
- रेत के धोरो का चित्रण (बीकानेर)
- फूल-पत्तियो का चित्रण (बीकानेर)
- पंजाबी + मुगल + दक्कनी (द० भारत) का प्रभाव |
- हिंदु देवी देवताओं के चित्र - मुश्लिम चित्रकारो द्वारा।
- बीकानेर व शेखावाटी के चित्रकार चित्र के साथ नाम व दिनांक लिखित है |
कैमल महोत्व = बीकानेर
कैमल रिसर्च सेंटर = जोहड़बीड़
मथेरणा = जैन
व्यक्ति को कहा जाता है |
- फ्रेस्को बुनो :- गीली दीवार पर चित्रकारी
- फ्रेस्को सेको:- सुखी दीवार पर
- साधारण विधि :- दीवार पर सीधी
- बालुराम कुम्हार
- जगदेव व तानसुख ।
(iii) किशनगढ़ चित्रशैली :-
- सावन्त सिंह ( नागरीदास) का शासनकाल
- किशनगढ़ चित्रकला का स्वर्णकाल
- भगवान की सुंदर चित्रकला (श्रीकृष्ण के चित्र सर्वाधिक)
- राजा सावन्त सिंह ने अपनी प्रेमिका रसिक बिहारी को राधा के रूप में चित्रित करवाया।
- प्रमुख चित्र :-
- बणी-ठनी =
- मोरध्वज निहालचंद चित्रकार था
- 1973 में डाक टिकट जारी ।
- "भारत की मोनालिसा " = एरिक डिक्सन ने कहा ।
- मोरध्वज निहालचंद ने नागर समुच्चय ग्रंथ को भी चित्रित करवाया |
- विशेषताएँ :-
- नारी चित्रण अधिक हुआ।
- रंग - सफेद व गुलाबी रंग व कोने पर गुलाबी रंग
- किशनगढ़ शैली = कांगड़ा चित्रकला का प्रभाव
(iv) नागौर चित्रकला :-
- फीके (बुजे हुए) रंगो का प्रयोग ।
- पारदर्शी कपड़े चित्रित किए जाते थे।
(v) अजमेर :-
- महिला चित्रकार = साहिबा
(vi) जैसलमेर :-
- इस पर अन्य किसी वशैली का प्रभाव नही है।
- मुमल के अत्यधिक चित्र बनाए गए ।
(3) ढुढॉड चित्रकला :-
(A) आमेर/ जयपुर :-
- मानसिंह के समय प्रारम्भ ।
- "रज्मनामा " ( महाभारत का फारसी अनुवाद) के चित्र
- मिजा राजा जयसिंह के समय श्रीकृष्ण के चित्र अधिक बने ।
- सूरतखाना :- सवाई जयसिंह के समय
- ईश्वरी सिंह के समय साहिबराम ने आदमकद चित्रण प्रारम्भ किया।
- पुण्डीक हवेली के चित्र = माधोसिंह के समय
- विशेषताएँ :-
- रंग = लाल, पीला, केसरिया, हरा
- कोनों पर लाल रंग |
- मुगल शैली का सर्वाधिक प्रभाव |
- पुरुषो के बिना दाड़ी - मुँह के चित्र ।
- आदमकद चित्रण - उद्यान चित्रण ( भित्ति चित्र)
- हाथियो का चित्रण - श्रीकृष्ण के चित्र
- प्रमुख चित्रकार :-
- लालजी, कुशला, रामजीदास
(B) अलवर :-
- विनयसिंह का समय :- अलवर चित्रकला का स्वर्णकाल
- "गुलिस्ता पुस्तक का चित्रण " = बलदेव ने
- "हाथीदाँत पर चित्रण " = मुलचन्द ने
- "कोकशास्त्र नामक पुस्तक का चित्रण " - शिवदान सिंह ने |
- विशेषताएँ:-
- (i) चिकने रंगो का प्रयोग
- (ii) कोनो पर बेल-बुंटे बनाएँ
- (iii) वैश्या, योगासन, लघु चित्रण प्रसिद्ध
(C) उनियारा चित्रकला :- टोंक
- ढुंढाड़ + बुँदी चित्रकला का मिश्रण।
- प्रमुख चित्रकार :- धीमा, भीम, मीरबक्श, काशी, रामलखन
- जनानी एवं मर्दानी महफिल का चित्रण ।
(D) शेखावाटी चित्रकला : हवेलियों के भित्ति चित्र
- नीले रंग का प्रयोग |
- युरोपिय प्रभाव
- जोगीदास की छातरी = उदयपुरवाटी
- छतरी के भित्ति चित्र = देवा चित्रकार
- "ऑपन एयर आर्ट गेलेरी " = उपनाम
(4) हाडोती चित्रकला :-
(i) बुंदी चित्रकला :-
- सुरजन के समय प्रारम्भ
- उम्मेद सिंह का समय = स्वर्णकाल
- उम्मेद सिंह को जंगली सुअर का शिकार करते चित्रण
- विशेषता :-
- हरे रंग का प्रयोग
- प्रकृति चित्रण अधिक
- मेवाड शैली का अधिक प्रभाव
- केले , खजुर,
- सरोवर का अधिक चित्रण |
(ii) कोटा चित्रकला : रामसिंह के समय शुरू
- उम्मेद सिंह का समय = स्वर्णकाल
- भगवान कृष्ण के चित्र |
- झाला हवेली (कोटा) = भित्ति चित्रण के लिए प्रसिद्ध ।
- वृक्ष =
- खजुर
- पशु-पक्षी =
- शेर व बतख
- विशेषताएँ :-
- नारी सौदर्य
- शिकार के दृश्यों का चित्रण ।
- महिलाओ को पशुओं का शिकार करते दर्शाया।
- रागमाला का चित्रण = डाकू | डालू चित्रकार ।