राजस्थानी भाषा की प्रमुख बोलियां
➤ मारवाड़ी- यह प्राचीन नाम मरूभाषा।
पश्चिमी राजस्थान की प्रधान/ मानक बोली जिसकी उत्पत्ति गुर्जर अपभ्रंश से हुई है। मारवाड़ी का आरम्भिक काल 8 वी सदी माना जाता है। साहित्यक रूप डिंगल। सोरठा, छंद, और मांड राग मारवाड़ी बोली की शिल्पगत विशेषता।
क्षेत्र - जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, पाली, नागौर, जालौर व सिरोही।
➤ सर्वाधिक क्षेत्र व सर्वाधिक आबादी में बोली जाने वाली भाषा।
❖ मारवाड़ी बोली को 4 भागों में बांटा जा सकता है -
(1) उत्तरी मारवाड़ी - इसमें बीकानेरी, बांगड़ी, शेखावाटी बोलियॉ शामिल। वेलि क्रिसन रूक्मणी री की रचना उसमें ही।
(2) पूर्वी मारवाड़ी - मारवाड़ी, ढाढकी एंव गिरासियों की बोली। राजिया रा सोरठा इसकी रचना।
(3) पश्चिमी मारवाड़ी - थली व थटकी बोलिया।
(4) दक्षिणी मारवाड़ी - खेराड़ी, गौड़वाटी, देवड़ावाटी, गुजराती, सिरोही आदि बोलियॉ शामिल।
❖ मारवाड़ी की उपबोलियॉ -
➤ मालवी - झालावाड़, कोटा, बांरां आदि इत्यादि जिलों का मध्यप्रदेश से सटा हुआ क्षेत्र। इसकी उपबोलिया - निमाड़ी, सोडवाडी, रतलामी ।
➤ निमाडी - इसे दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है।
➤ रांगड़ी - मारवाड़ी तथा मालवी का मिश्रण : यह मुख्यतः राजपूतों द्वारा बोली जाती है। यह बोली कर्कशता लिए होती है।
➤ मेवाड़ी - मेवाडी मारवाडी के बाद दूसरी महत्वपूर्ण बोली। मोतीलाल ने इसे मारवाडी की उप-बोली माना है। उदयपुर, राजसमंद, चितौड़गढ़। धावडी उदयपुर की एक बोली।
➤ खैराड़ी - शाहपुरा, जहाजपुर(भीलवाड़ा) तथा टोंक जिले का बनास बेसिन का भाग। ये मेवाडी, ढूढाडी व हाडौती का मिश्रण। मालपुरा टोक में प्रचलित बोली माल खैराड़ी।
➤ हाड़ौती - ढुढाडी की उप बोली। कोटा व बूंदी का अधिकांश भाग। सर्वप्रथम केलॉग की हिन्दी व्याकरण में 1875 में हाड़ोती का भाषा के अर्थ में प्रयोग किया गया। हाड़ोती के उतर में नागरचोल, उतर-पूर्व में स्यौपुरी व दक्षिण मलवी बोली प्रचलित है।
➤ बागड़ी/भिलाड़ी - वागड़ क्षेत्र - डूंगरपुर, बांसवाड़ा। मेवाडी व गुजराती की मिश्रित बोली। गियर्सन इसे भीली भी कहते है।
➤ देवड़ावाटी - सिरोही। इसका दूसरा नाम सिरोही।
➤ गोड़वाड़ी - जालौर, पाली में लूणी नदी का प्रवाह क्षेत्र। बीसलदेव रासों की रचना गोडवाडी भाषा में की गई है। गौडवाडी की उपबोलियॉ - सिरोही, बालवी, खणी व महाहड़ी।
➤ शेखावाटी - चुरू, झुंझुनू, सीकर जिलो का अधिकांश क्षेत्र। इसमें मारवाडी व ढूढाडी का पर्याप्त प्रभाव।
➤ तोरावाटी- कांतली नदी का प्रवाह क्षेत्र : सीकर-झुुंझुनु
➤ मेवाती - अलवर, भरतपुर। यह हिन्दी व राजस्थानी के मध्य सेतु का कार्य करती है। ब्रज भाषा का प्रभाव। जगरौती - करौली की प्रमुख बोली। यह बोली हरियााणवी, ब्रज व राजस्थानी की संधिस्थल की बोली। अतः यह सीमावर्तिनी बोली।
➤ अहीरवाटी - अलवर जिलें का राठ क्षेत्र : पशुपालन के लिए प्रसिद्ध। इसे राठी भी कहा जाता है। यह बांगरू(हरियाणवी) व मेवती के मध्य संधि स्थल की बोली कही जाती है।
➤ खासथली - जोधपुर व जैसलमैर जिले का मिलन रेखा क्षेत्र
➤ ढूंढाड़ी - जयपुर-दौसा का क्षेत्र;ढूंढ नदी क्षेत्र। इस बोली का प्राचीनतम उल्लेख 18 वी सदी की रचना आठ देस गुजरी से मिलता है। इसका साहित्यिक रूप पिंगल कहा जाता है।
➤ गोड़ावाटी - किशनगढ़ क्षेत्र :अजमेर
➤ थली - बीकानेर, नागौर,चूरू व दक्षिणी गंगानगर की मरूभूमि को थली।
➤ राजावाटी - जयपुर के पूर्वी भाग में।
➤ चौरासी - जयपुर के दक्षिण-पश्चिम व टोंक के प.भाग में।
➤ नागरचोल - सवाई माधोपुर के दक्षिण -प. व टोंक के दक्षिणी व पूर्वी भाग में। पचवारी - लालसोट से सवाई माधोपुर के मध्य प्रचलित।
➤ ब्रज - भरतपुर, धौलपुर व करौली में प्रचलित। बीसलदेव रासो ब्रज भाषा का प्रथम काव्य।