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कुंभलगढ़ दुर्ग - इतिहास, महत्व और निर्माण ||

कुंभलगढ़ दुर्ग - इतिहास, महत्व और निर्माण से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी

कुंभलगढ़ दुर्ग के अन्य नाम

कुंभलगढ़ दुर्ग को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे - कुंभलमेरू, कुंभपुर, मच्छेन्द्र, माहोर, मेवाड के राजाओं की शरणस्थली, मेवाड़-मारवाड़ सीमा का प्रहरी, तथा मारवाड की छाती पर उठी तलवार

निर्माण और इतिहास

कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने नागौर विजय के उपलक्ष में शिल्पी मण्डन की देखरेख में करवाया था। इससे पहले यहाँ मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेष थे। दुर्ग का नामकरण कुंभा ने अपनी पत्नी कुंभलदेवी की स्मृति में करवाया।

द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया

यह दुर्ग 36 किमी लंबी दीवार से घिरा हुआ है, जिसे 'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' कहा जाता है। एक लघु दुर्ग कटारगढ़ दुर्ग इसे 'मेवाड़ की आँख' कहा जाता है।

कटारगढ़ दुर्ग की विशेषताएँ

  • 1540 ई. में महाराणा प्रताप का जन्म यहाँ स्थित बादल महल में हुआ।
  • कटारगढ़ में रानी झाली का मालिया महल है।
  • उत्तर में झालीवाब बावड़ी और मामादेव का कुण्ड है।
  • यहाँ पृथ्वीराज की 12 खम्भों की छतरी भी स्थित है।

दुर्ग के प्रमुख दरवाजे

इस दुर्ग में कुल 10 दरवाजे हैं।

इतिहासकारों की दृष्टि में कुंभलगढ़ दुर्ग

कर्नल टॉड ने इस दुर्ग की तुलना एट्रूस्कन से की है (सुदृढ़ प्राचीर, बुर्ज और कंगूरों के कारण)। गोपीनाथ शर्मा ने इसे कुंभा की सामरिक और रचनात्मक गुणों की उपलब्धि बताया है।

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